कभी???
– क्या कभी अपनी मेड के बच्चे को लैपटॉप पर कोई अच्छी सी फिल्म दिखाई है?
– क्या कभी पड़ोस के मार्केट में भुट्टे सेक रही औरत से पूछा है कि उसका परिवार कहां रहता है?
-क्या पान वाली गुम्टी पर बैठे दद्दा से पूछा है कि बिहार के एक छोटे से गांव में उनका पोता 10वीं की परीक्षा क्यों नहीं दे पा रहा?
-क्या देर रात लौटते हुए किसी रिक्शे वाले को 20 की जगह 100 रुपए दिए हैं कि वो भी जल्दी घर जा सके?
– क्या जनपथ पर दुकान लगा रही औरतों से जाना है कि उनमें से एक इकनॉमिक्स में ग्रैजुएट भी है?
– क्या किसी वृद्धाश्रम में जाकर एक ऐसे पिता के पास बैठे हैं, जिसके बेटे ने ऋषिकेश यात्रा के नाम पर उन्हें चलती ट्रेन से फेंक दिया था।
-क्या पागल बुलाई जाने वाली किसी औरत से बात की है? (वो इलेक्ट्रिक शॉक के निशान दिखाती हुई अपनी पूरी कहानी सुनाएगी।)
– क्या कभी खुद को एक तरफ रख कर अपने मन और पर्स के आखिरी सिक्के तक को बांटा है किसी अनजान के साथ?
(पूछिए, बांटिए, साथ बैठिए… जिंदगी में इंसान होने के लिए कोई वाद, किसी थ्योरी जानने की जरूरत नहीं है। अच्छी बहसें होना अच्छा है लेकिन जीना संवेदनशील हो तो थोड़ा और अच्छा हो। टटोलिए कि तमाम बहसों में पड़ने वाले हम दरअसल जी क्या रहे हैं?)